रामानंद सागर जी की रामायण कि तरह बलदेव राज (बी आर) चोपड़ा जी की महाभारत जैसा धारावाहिक भी आज तक नहीं बना। महाभारत अनेक पीढ़ियों की महागाथा है, जिसमें अनगिनत पात्र हैं। चोपड़ा जी की इस प्रस्तुति का प्रथम प्रसारण १९८८ में शुरू हुआ था। इतने वर्ष बीत गए, पर इसके निर्माण, निर्देशन, संवाद, छायांकन, वेश-भूषा, संगीत, कला निर्देशन आदि का आज तक कोई मेल नहीं हैं। इन सब में सोने पे सुहागा लगाने का काम किया उनके कलाकारों ने, आज तक न नितीश भरद्वाज जी जैसा कृष्ण पर्दे पर आया है, न फिरोज़ खान जी जैसा अर्जुन। हम यही बात इस धारावाहिक के हर पात्र को निभाने वाले कलाकार के बारे में कह सकते हैं। महाभारत के हर भाग के अंत में, उसमें भाग लेनेवाले सभी मुख्य और सह कलाकारों को नाम और चित्र सहित श्रेय दिया गया है। शायद ही कोई ऐसा सह कलाकार हो जिसने परदे पर संवाद बोले हों पर ऐसा श्रेय न मिला हो, इसलिए हम महाभारत के सभी कलाकारों को उनके नाम, पात्र और चेहरे से पहचान सकते हैं। परंतु इन सभी कलाकारों में एक कलाकार ऐसे हैं जो इस धारावाहिक के ५ भागों में एक मुख्य पात्र निभाते हुए नज़र आये पर उन्हें ऐसा श्रेय नहीं मिला। यह लेख उसी कलाकार के योगदान पर प्रकाश डालने का प्रयास है।
हम सब जानते हैं कि महाभारत में अश्विनी कुमारों के वरदान से जन्मे महाराज पाण्डु की छोटी रानी माद्री के जुड़वाँ पुत्रों, नकुल और सहदेव, की भूमिका समीर और संजीव नामक चित्रे बंधुओं ने निभायी थी। यह दोनों भाई ९० के दशक में हिंदी फिल्मों में भी नज़र आये थे। मैंने समीर चित्रे जी को ‘दिल है के मानता नहीं (१९९१)‘ और ‘राजू बन गया जेंटलमैन (१९९२)‘ और संजीव चित्रे जी को ‘खिलाडी (१९९२)‘ में देखा है। महाभारत में पांडवों का पांच का आकड़ा महत्वपूर्ण हैं, नकुल और सहदेव के बिना पांडव, पांडव नहीं हैं, फिर भी अपने तीन दिग्गज बड़े भाईयों की छाया में यह एक प्रकार से उपेक्षित पात्र हैं। इसलिए इन पात्रों के बारे में हम कम ही जानते हैं, और इन्हें निभाने वाले कलाकारों को भी, उनके अभिनय को चुनौती देनेवाले दृश्य कम ही मिले। महाभारत के भाग ३५ में श्री कृष्ण, द्रौपदी से कहते हैं – “आधुनिक संसार में नकुल से अधिक सुंदर कोई नहीं और सहदेव सहनशीलता में सर्वोत्तम है”। हम यह भी जानते हैं कि दोनों भाई खड्ग युद्ध में प्रवीण थे। जरासंध वध के बाद, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा मिट गई। तद्पश्चात युधिष्ठिर को इंद्रप्रस्थ में छोड़, चारों भाई जब विजय यात्रा पर निकले, नकुल पश्चिम से और सहदेव दक्षिण से दिग्विजयी हो कर लौटे। आगे चलकर अज्ञातवास के दौरान, सहदेव कपटी शकुनि मामा को मारने की प्रतिज्ञा ले, महाभारत के युद्ध में उसे पूरा करतें हैं।
मुझे याद है, महाभारत के प्रथम प्रसारण के अंतिम दौर (१९९०) में, मैंने किसी से सुना था कि महाभारत के फिल्मांकन के दौरान, चित्रे बंधुओं में कोई एक अस्वस्थ हो गए थे और कुछ दृश्यों में उनकी जगह उनके किसी और भाई ने उनका चरित्र निभाया था। परंतु प्रथम व पुनः प्रसारणों में, यह परिवर्तन मेरे ध्यान में कभी नहीं आया। १०-१२ वर्ष पहले जब रामायण और महाभारत फिर बाज़ार में आए, मैंने भी उन्हें ख़रीदा और इस बार मैंने यह धारावाहिक बहुत ध्यान से देखे, क्योंकि यदि कुछ छूट जाए, तो पीछे जाकर फिरसे देखा जा सकता था। इस बार अभिनेता का वह परिवर्तन मेरे ध्यान में आया। महाभारत के सबसे प्रभावशाली प्रसंग, अर्थात पूरे द्यूतक्रीड़ा प्रसंग के दौरान नकुल का पात्र, समीर चित्रे जी की जगह, उनसे मिलती जुलती शक्ल और ढील-डौल वाले कलाकार ने निभाया है। यह ज़ाहिर है कि महाभारत बनाने वाले यह नहीं चाहते होंगे कि इतने महत्वपूर्ण घटनाक्रम के दौरान इस परिवर्तन की ओर दर्शकों का ध्यान केंद्रित हो और कहानी से ध्यान हट जाए, इसलिए इस कलाकार को हर भाग के अंत में श्रेय नहीं दिया गया। यह कलाकार पहली बार नज़र आते हैं भाग ४५ के उस दृश्य में जब, पांडव इंद्रप्रस्थ से हस्तिनापुर द्युत खेलने आते हैं और अपने जेष्ट पिताश्री ध्रितराष्ट्र से मिलते हैं।
नकुल की भूमिका में यह कलाकार अंतिम बार भाग ५० में नज़र आए। भाग ५१ में नकुल का कोई दृश्य नहीं है और समीर चित्रे जी की वापसी भाग ५२ में होती है। प्रभु की कृपा है कि उस समय समीर जी पर आई विपदा दूर हुई और वह अपने चरित्र में लौटे सके। भाग ४५ – ५० के अंत में समीर चित्रे जी को ही श्रेय दिया गया है। इस दौरान इस कलाकर को कभी छिपाने का कोइ प्रयत्न नहीं किया गया, उन्हें वैसे ही फिल्माया गया है जैसे समीर जी को फिल्माया गया होता, पर सामने से यह ज़ाहिर भी नहीं किया कि ‘देखो कलाकार बदल गया है’। मुझे लगा यह कलाकार कौन है यह शायद कभी पता न चले, परंतु भाग ६१ में यह कलाकार एक नयी भूमिका में फिर नज़र आए। इस बार उन्होंने अर्जुन और द्रौपदी के पुत्र श्रुतकर्मा का पात्र निभाया। श्रुतकर्मा का परिचय उस दृश्य में होता है जब उप-पांडव अभिमन्यु सहित अपनी माता द्रौपदी से १३ वर्ष के वनवास के बाद मिलने जा रहे हैं। वह आपस में चर्चा कर रहे हैं कि क्या उनकी माता इतने वर्षों बाद उन्हें पहचान पाएंगी या नहीं। इस बार इस कलाकार को नाम और चित्र सहित श्रेय दिया गया हैं, इनका नाम है – ललित। और यदि वह सचमुच समीर जी के भाई हैं तो उनका पूरा नाम ललित चित्रे होगा। महाभारत के युद्ध में वह २-३ बार फिर नज़र आये और उनका आखरी दृश्य वह है जिसमें अश्वथामा उन्हें पांडव जानकर उप-पांडवों को मार देते हैं।
हर कलाकार यह चाहता है, कि लोग उसे जानें, उसके काम से उसे पेहचानें परंतु इस कलाकार ने यह जानते हुए कि उनके काम को श्रेय नहीं मिलेगा, फिर भी नकुल का पात्र निभाया। हो सकता है, उनका चयन सिर्फ इसलिए हुआ हो, क्योंकि वह समीर जी जैसे लगते हैं। यदि वह समीर जी के भाई हैं, तो संभवतः उन्होंने यह केवल अपने भाई के लिए किया हो। समीर जी उस समय उपलब्ध क्यों नहीं थे, इसका जो भी कारण रहा हो, ललित जी, मुश्किल में फसे महाभारत बनानेवालों की एक बहुत बड़ी समस्या का समाधान बने। नकुल का पात्र निभाते समय उन्होंने न समीर जी की नक़ल करने का प्रयास किया और न उनसे हट कर कुछ अलग करने का प्रयत्न किया। नकुल के हाव-भाव और व्यवहार में कोई बदलाव ज़ाहिर नहीं होता। दुसरे शब्दों में उनका अभिनय दर्शक का ध्यान कहानी से हटाकर खुद पर केंद्रित करने का प्रयास नहीं करता। हर दृष्टिकोण से मेरी दृष्टि में यह सराहनीय है। ललित जी, मैं आपको धन्यवाद देना चाहती हूँ, आपने इस महाभारत के फिल्मांकन को रुकने नहीं दिया और यह महागाथा बिना रुके, हम तक पहुँचती रही। आपका बहुत बहुत आभार और धन्यवाद।
– मैत्री मंथन
* बहुत ढूंढ़ने पर भी समीर जी के अस्वस्थ होने और उनकी जगह ललित नामक कलाकार के महाभारत में शामिल होने के बारे में कोई पुष्टि नहीं हो सकी। भविष्य में यदि कोई जानकारी मिली, तो मैं इस लेख का अद्यतन करूंगी। धन्यवाद।
* The information provided in this blog is to the best of our knowledge, if any discrepancies are found please let us know. Thank you.
Extremely well written. Conveys everything very explicitly.
Well done. Keep it up. Take Care and God Bless.